Tuesday, November 30, 2010

मन व्यथित था, सुकून न मिला
जीवन के अंधड़ में, एकांकी पल न मिला I

बाहर जीवन का कोलाहल है, गहन में श्मशान की निशब्दता है
पंछियों के नाद के पीछे गगन की नीरवता है I

हर मुस्कराते मुखौटे के पीछे, एक अवसाद भरा मन है
एक अज्ञात तृष्णा से त्रस्त अन्तरमन है I

पथ है पर पथिक नहीं, यात्रा है पर गंतव्य नहीं
मंच है पर वक्ता नहीं, संवाद है पर श्रोता नहीं I