Saturday, July 26, 2014

मुर्दों का टीला - रांगेय राघव

रांगेय राघव हिंदी साहित्य के रत्न थे। मात्र ३९ वर्ष के जीवन में उन्होंने साहित्य की उन ऊँचाइयों को छुआ। राघव का नाम काफी साल पहले सुना था लेकिन अब तक उनकी कोई रचना नहीं पढ़ी थी लेकिन अभी अभी उनकी उत्कृष्ट रचना "मुर्दों का टीला" का समापन किया। सिंधु-घाटी की सभ्यता के नगर मोअन-जो-दरों (Mohenjodaro) पर आधारित यह रचना, हिंदी साहित्य में एक प्राचीन, भूली-बिसरी नगर सभ्यता का सजीव चित्रण करती हैं। १९४६ में लिखी गयी यह रचना उस समय के पुरातात्विक उत्खनन, खोज और अध्ययन पर आधारित हैं। लगभग ७० वर्ष के विशाल अंतराल में, उस समय की मान्यताएँ या तो बदल चुकी हैं या फिर खारिज हो चुकी हैं और इतने ही वर्षों में नयी खोज, उत्खनन के चलते इस गुमनाम सभ्यता में प्राप्त जानकारी में काफी वृद्धि हुई हैं। सिंधी भाषा में "मुआ" मरे या मृत व्यक्ति, मुर्दा, वस्तु के सम्बोधन के लिए प्रयुक्त होता हैं और "मोअन" "मुआ" शब्द का बहुवचन हैं। "दरो" का अर्थ हैं "टीला"। बीसवीं शताब्दी के शुरूआती दौर में यहाँ पर पुरातात्विक खुदाई की शुरुआत हुई। इससे पहले इस स्थान के आस पास के निवासी, इस प्राचीन नगर की ईंटें का प्रयोग अपने भवन इत्यादि के निर्माण में प्रयुक्त करते थे। ईंटें निकालते समय, खुदाई करने वालों को नर-कंकाल मिले, जिसके चलते इस स्थान का नाम "मोअन-जो-दरो" पड़ गया अर्थात मुर्दों का टीला। अब इस नगर का वास्तविक नाम क्या था, यह अब इतिहास और भूतकाल के अँधेरे में कहीं खो गया हैं। भारत का पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग आज भारत में और जगह भी उत्खनन कर रहा हों जिससे इस सभ्यता के बारे में मिलने वाली जानकारियां बढ़ रही हैं लेकिन इस जानकारी का राजनैतिक लाभ के चलते इसका शोषण, संशोधनवाद और भगवाकरण के चलते, इतिहास को तोड़-मरोड़ कर अपने राजनैतिक और राष्ट्रवादी प्रचार के लिए किया जा रहा हैं।


"मुर्दों का टीला" मोअन-जो-दरो पर आधारित एक काल्पनिक उपन्यास हैं जो समय के जीवन-शैली , धर्म, व्यापर, कला, अध्यात्म इत्यादि पर प्रकाश डालती हैं। उपन्यास के चार मुख्य पात्र हैं मणिबंध जो कि विदेश से वर्षों बाद व्यापार करके, अकूत धन-सम्पदा अर्जित करके वापस मोअन-जो-दरो आया हैं। दूसरी पात्र हैं मणिबंध की मिश्री (Egyptian) दासी नीलूफ़र जो मणिबंध द्वारा मिश्र के दास बाज़ारों में मोल-तोल कर खरीदी गयी सुन्दर महिला थी। नीलूफ़र के आकर्षक रूप से अभिभूत होकर मणिबंध उसे अपनी स्वामिनी बनाने का वचन देता हैं। इसी बीच उत्तर के हरप्पा नगर से एक प्रेमी दम्पति का मोअन-जो-दरो में आगमन होता हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बेहद विकट और भिक्षा इत्यादि से किसी तरह काम चलते हैं। पुरुष (विल्लिभित्तूर) एक अभूतपूर्व गायक हैं और साथ ही एक अति-आदर्शवादी व्यक्ति भी हैं और महिला (वेणी) एक नृत्यांगना। मणिबंध नृत्यांगना पर आसक्त हो जाता हैं और यहीं से प्रेम, प्रतिद्विंदिता, ईष्या, छल-कपट, सत्ता और शक्ति के वर्चस्व के लिए संघर्ष की गाथा शुरू होती हैं। लेखक ने चरित्रों, घटनाओं, वातावरण का इतना शक्तिशाली और सजीव चित्रण किया हैं की ये सब पाठक के मन में पूरी तरह से आभासी वास्तविकता की तरह छा जाते हैं और यह उपन्यास एक चलचित्र के भाँती पाठक के मन की आँखों के सामने से निकल जाता हैं। उपन्यास के अन्य लघु पात्र हैं हेका, जो नीलूफ़र की मित्र हैं और उसी के साथ साथ बचपन से धनवानों द्वारा खरीदी बेचीं गयी और इनके साथ हैं एक अश्वेत अफ़्रीकी दास अपाप, जो हट्टा-कट्टा बलशाली हैं। दूसरा लघु पर उतना ही महत्वपूर्ण पात्र हैं मणिबंध का अत्यंत विश्वसनीय और निकटतम मित्र और सलाहकार, एक मिश्री वृद्ध आमन-रा, जो वाक्पटु, बुद्धिमान और जीवन भर का अनुभवी होने के साथ साथ अत्यंत क्रूर, निर्दयी एवं धूर्त हैं।


यह उपन्यास शुरू में अपना समय लेते हुए चरित्रों के भीतर जाकर उनके प्रेम, आशा, ईष्या, सुख, दुःख, भय, स्वार्थ से परिचित करता हैं। उपन्यास उस समय और अधिक गति पकड़ता हैं जब खानाबदोश आर्यों का समूह हरप्पा नगर पर आक्रमण करके और कड़े युद्ध के बाद उसे पराजित कर, वहां के मुख्य गण को अपना दास बना लेते हैं।


इस उपन्यास के कुछ रोचक एवं आकर्षक बिंदु हैं :


# लेखक द्वारा वर्णित नर्तकी के प्रथम बार किये गए नृत्य का वर्णन, जिसमे वह अपना बायां पैर उठाती हैं, वह मोअन-जो-दरो की खुदाई के दौरान मिली कांस की ६ इंच की नर्तकी की मूर्ती का स्मरण करता हैं जो की अब Dancing Girl के नाम से विश्व-विख्यात हैं।


# उपन्यास में नगर की प्रसिद्द नालियों की संरचना का वर्णन हैं और कैसे मोअन-जो-दरो विश्व के बड़े से बड़े साम्राज्यों जैसे की मिस्र, सुमेर, एलाम इत्यादि, से व्यापार इत्यादि करता था।


# मोअन-जो-दरो की शासकीय व्यवस्था व्यक्ति-केंद्रित न होकर शासन व्यवस्था गणों के हाथों में थी जो खुद नागरिक होने के साथ साथ व्यापारी भी थे।


# दास/दासियों की दशा पशुओं मात्र रत्ती भर बेहतर थी। नागरिकों को लगता था दास उनकी सेवा और उनके द्वारा शोषण के लिए ही बनाये गए हैं और दास भी सोचते थे की दास दास ही रहते हैं और स्वामी स्वामी ही हो सकता हैं।


# सुमेर, मिस्र, एलाम के विद्वानो में ब्रह्माण्ड, जीवन की उत्पति, देवों को लेकर द्विन्दात्मक तर्क-वितर्क।


# आमन-रा द्वारा मणिबंध को सत्ता और शक्ति के महत्व को समझाना।


अंत में यह उपन्यास केवल के काल्पनिक हैं इससे इतिहास मान लेना गलती होगी परन्तु अगर पाठक थोड़े ही देर के लिए इस उपन्यास को इतिहास का वर्णन मान ले तो कोई भी अतिश्योक्ति नहीं होगी।